सिखें “हें…हें कुरो ?” कईंधे तूं.
सोख हूंधे न समजे कीं,
डोखमें ज सिखें रुंधे तूं.
कख तोडी़ ने के ब टोकर,
सिखें परबारो खेंधे तूं.
सत समागम न के कडें,
सिखें न पगला छूंधे तूं .
डिंधल डिने भिसियाल “बिहारी” ,
सिखे न हथ वारींधे तूं .
सोख हूंधे न समजे कीं,
डोखमें ज सिखें रुंधे तूं.
कख तोडी़ ने के ब टोकर,
सिखें परबारो खेंधे तूं.
सत समागम न के कडें,
सिखें न पगला छूंधे तूं .
डिंधल डिने भिसियाल “बिहारी” ,
सिखे न हथ वारींधे तूं .
सगा हजारुं, सगाईयुं लख, गडजी गजें करोडुं,
लुछें विठयुं प कुछें न लिखपण ! भॉरप जो नां भॅणूं !
भांऐं भांऐं के भेरो के ला भुछड़युं थींन्युं भेणूं,
जिगर विगर की जडी़ सगॅ को ? रत जयुं डिई डिई रॅणूं !
जिरकलडी़ के जांपलीऐनुं जचॅ न बारा विनणूं,
पखा छडी परडेस विने त्युं तांय कुरेला , भॅणूं !
समजू च्यां, संभारी रखजा, सूंवालीयुं अईं भॅणूं,
धूऐ विगर पण धुखणुं कीं से, क्यांनुं सिखंधो छॅणूं !
कितरीयुं कसल्युं, कितरीयुं पसल्युं, कितरो गिनणूं डीणूं,
सुतर राखड़युं, उंतर लागणयुं, लसॅ भला कीं लॅणूं ? !
KUTCHI NAYE VARE JI Aanke
Lakh Lakh vadhaiyu,
HAPPY ASHADHI BEEJ.
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http://kplt20.in
निपट निन्ढें बिजें वारा
जबर जॉराते थुड़ वारा …….
मींयड़ें के वारण वारा
पोंयूं रिढूं हित वेंत्यूं
माडूडा़ हित ठापर खणेंता …….
रांध भिरांठडी़ रमाय वारा
कीडि़यूं माकूडा़ हित वसेंता
पखीडा़ सांजी भेरा थै ने ……..
जीव मातर के थाधारे ने़
रतें नीलें टेटें वारा
ऊनीं ऊनीं पाड़ें वारा
खासा लग़ेंता वड़ डाडा
गो़ंयूं मैयूं वेसा खेंत्यूं
पिरभ पाणीजा हित वें ता
वला़ लग़ेंता वड़ डाडा
जर जिनावर हित ठेकेंता
किलबिल किलबिल रयाण करींता
वेसां डींयेंता वड़ डाडा
चिईं डिंयेंजी चमक धुनियांजी , भलें लग़ेती खासी,
भाकीं गा़ल ही साव खोटी, जेंणां पांके जलइ खपे.
सीरा-पूडी लडूं ने भजीया, सिभाजें रोज कीं माडूके ?
ई मिठी लग़ंधी रोज रोटी, जेंणां पांके जलइ खपे.
गीत-गजलूं लिखी करीनें धरध तुं ओछो कैजें,
अचींघी ‘सरमाड़’ हथ्रॉटी, जेंणां पांके जलइ खपे.
मा पेके अईं मान डयॉ, अईं आंजा आधार ;
अिनींजी आसीससेंज, अईं तरी थींधा पार. : २
मेहताजी के मान डॅ, भणतर में मन भेड़ ;
प्यारो थीजे प्रेम सें, रखॉ मिणीअसें मेड़. : ३
वडे वताई वाट तें, समजी हलजा सॅज़ ;
चॅ नारायण नीमसें, नित अुनींअ वट वॅज. : ४
सुखसें वॅलो रॅ सुमीं, वॅलो अुथीये वीर ;
बर बुद्धि नें धन वधे, सुखमें रॅ सरीर. : ५
गूरुके ईश्वर सम गणें, भणतर में मन भेड़ ;
विध्या सें वृध्घि थीये, विध्या जॅडो़ केर . : ६
विगर सवारथ वडेंजी, सेवा कर तूं सॅज़ ;
नारायण चॅ नीम सें, वधू अुनींअ वट वॅज़ . : ७